योगी
Wednesday, 27 September 2017
मुक्तक बगर भएर अनि म पत्थर भएर सधै भत्किएको पुरानो घर भएर बर्षौ देखी कसैको पर्तिक्षामा छु पिपल बिनाको एक्लो बर भएर
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