योगी
Tuesday, 2 January 2018
मुक्तक अमृत थियौ हिजो बिष बन्दी भयौ मलाई फसाउन खाडल खन्दी भयौ पराईको हात शिरमा के परेको थियो प्रेमको खेलमा ठूलै प्रतिद्वंद्वी भयौ
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment